Tuesday, 18 February 2025

बसंत का मधुर संगम

 


यह एक बसंत की मनमोहक दोपहर थी, जो प्रकृति की मधुर बाँहों की तरह महसूस हो रही थी। सूरज अपनी सुनहरी किरणों से धरती को आलोकित कर रहा था, और एक खूबसूरत बगीचा अपनी पूरी शोभा में खिला हुआ था। घास मखमली कालीन की तरह फैली थी, पूरी तरह से सजी-संवरी, और रंग-बिरंगे फूल मानो धरती पर इंद्रधनुष रच रहे थे। उनकी मीठी सुगंध ताज़ी हवा में घुल-मिलकर एक अदृश्य संगीत सा रच रही थी, जो ठंडी हवाओं के साथ बह रही थी।

इसी स्वर्गीय बगीचे में, एक अकेली पंछी डाल-डाल पर फड़फड़ा रही थी। उसका घोंसला उजड़ चुका था, और अब उसके पास सिर्फ यादें ही बची थीं। उसके दिल में उदासी थी, परंतु उसकी आत्मा में हार मानने की कोई जगह नहीं थी। उसने अपने पंख फैलाए और ऊँचाइयों की ओर उड़ चली, प्रकृति की सुंदरता में अपनी तकलीफ का मरहम ढूँढ़ते हुए। उसने उन फूलों की ओर देखा, जो हवा के साथ लहराते हुए कोई अनकही कहानी सुना रहे थे।

एक मजबूत शाखा पर बैठकर, अकेली पंछी ने उदास निगाहों से बगीचे को देखा। एक गहरी साँस ली, मानो किसी साथी की तलाश में कोई मौन निवेदन कर रही हो। और फिर, मानो सृष्टि ने उसकी मौन प्रार्थना सुन ली हो, उसकी नज़र एक दूर की शाखा पर बैठे एक और पंछी पर पड़ी।

वह पंछी भी अकेला था, उसके दिल पर भी तन्हाई की छाप थी, लेकिन उसकी आँखों में उम्मीद झलक रही थी। जब उनकी आँखें मिलीं, तो मानो समय ठहर गया। एक अनकहा एहसास दोनों के बीच जाग उठा, जैसे वे पहले भी कहीं मिले होंकिसी और जीवन में, या शायद किसी सपने में।

धीरे-धीरे, वे दोनों अपनी-अपनी शाखाओं से उतरे। हिचकिचाहट भरे लेकिन उत्सुक कदमों से वे एक-दूसरे के करीब आए। अब यह बगीचा पहले जैसा नहीं लग रहा थाफूल और भी चमकदार हो गए थे, हवा और भी कोमल लगने लगी थी, और यह दुनिया पहले से कहीं अधिक सुंदर प्रतीत हो रही थी। वे अब अकेले नहीं थे।

वो आखों से अपने दिल की अनकही बातें कह रहे हों। बिना शब्दों के, उनके दिल एक ऐसी भाषा में बोल रहे थे जिसे केवल प्रेम समझ सकता था। उनकी निकटता में एक मधुर लय थी, जो इस दोपहर को और भी ख़ूबसूरत बना रही थी। बगीचा दो आत्माओं के इस मिलन का मूक साक्षी बन गया, जो इतने समय तक अकेले भटक रही थीं।

सूरज धीरे-धीरे क्षितिज के पार जाने लगा, आकाश गुलाबी और सुनहरे रंगों से भर उठा। उन दोनों पंछियों ने एक निश्चय कियावे साथ मिलकर एक नया घोंसला बनाएँगे, जहाँ केवल प्रेम और अपनापन रहेगा। बीता हुआ समय अब कोई मायने नहीं रखता था, दुनिया की हलचल भी महत्वहीन थी। वे अब एक-दूसरे को पा चुके थे, और यही उनके लिए सबसे अनमोल था।

अपने पंखों को साथ में फैलाए, वे संध्या के धुँधलके में उड़ चलेएक नए सफर पर, जहाँ प्रेम और साथ हमेशा बना रहेगा। यह बगीचा, जो पहले केवल एक शरणस्थली था, अब एक ऐसी प्रेम कहानी का गवाह बन चुका था, जो बसंत ऋतु की तरह सदा अमर रहेगी।

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