Friday, 27 May 2016

To you, my Man


It was just an ordinary day,
But you turned it into magic in your way.
Days, months and years have flown,
Yet that moment remains the most beautiful I've known.

The evening stars whispered their light,
A melody lingered, soft and bright.
You tried your best to win my heart,
For in love’s game, you played your part.

Deep inside, I felt the stir,
A quiet song, a gentle whisper.
But words eluded, I couldn't say,
Until your arms took me away.

You held me close, time stood still,
The world vanished, bent to your will.
The moonlight danced upon the stream,
As we became one, within a dream.

I loved you, and you loved me,
A fate entwined, a destiny.
Your love, a warmth that made me whole,
The sweetest song that touched my soul.

"Thank you" feels too small a phrase,
To honor the love you give and raise.
My man, my friend, my guide you are,
My perfect match, my brightest star.

To you, I give all of me,
A heart that's yours for eternity.
No one else was meant to be,
For me, there’s only you, endlessly.

 


On The Road To Paradise



चारों ओर बिछी हुई बर्फ की सफेद चादर, देवदार तथा चीड़ के पेड़ों से गिरते बर्फ के टुकड़े सच में यहाँ आने वालों को नई दुनिया का आभास देते हैं। जिधर नजर दौड़ाएँ, बस बर्फ ही बर्फ दिखती है और उस पर दिखते हैं बर्फ के खेलों का आनंद उठाते हुए लोग जो देश के विभिन्न भागों से आते हैं।हर शख्स कह उठता है : 'अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।'




अब जबकि वादी बर्फ की चादर ओढ़ चुकी है। चिनार के पेड़ सुर्ख हो चुके हैं। पहाड़ों पर शीन की चमक से लगता है जैसे चाँदी का वर्क डाल दिया गया हो। वादी के इसी नजारे को तो जन्नत कहते हैं और जन्नत का शौक रखने वालों के लिए यही माकूल समय होता है सैर करने का।






राज्य में यूँ तो कई पर्यटन स्थल हैं जहाँ जाने की चाहत हर आने वाले पर्यटक की होती है पर गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम जाए बिना शायद ही कोई रह पाता हो।




सबसे पहले बात करते हैं गुलमर्ग की। यह कश्मीर संभाग के बारामूला जिले में स्थित है। यह श्रीनगर से 57 किलोमीटर की दूरी पर है। गुलमर्ग में स्कीइंग, गोल्फ कोर्स, विश्व की सबसे ऊँची केबल कार है।



हमने इससे पहले सपने में भी इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी । ऐसा लगk  हम किसी और दुनिया में आ गए हैं।



पहलगाम को बॉलीवुड के कारण पहचान मिली है क्योंकि इसके आसपास स्थित अरू वैली तथा बेताव वैली में कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है और अमरनाथ की यात्रा का परंपरागत रास्ता भी यहीं से है। लिद्दर नदी के दोनों ओर बसे पहलगाम की सुंदरता अपनी मिसाल आप है। यहाँ पर घुड़सवारी, ट्रैकिंग, गोल्फ, फिशिंग आदि की पूरी सुविधा है। 




कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।



 
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।



माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।


पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं।





Our Travelogue published in Navbharat Times - 05.04.2016

Wednesday, 25 May 2016

Iskcon - Sultanpur Road, Lucknow


लखनऊ के शोर और भीड़-भाड़ से दूर, सुल्तानपुर रोड पर, एक शांत और पवित्र जगह है – इस्कॉन का श्री श्री राधा रमण बिहारी जी मंदिर। कभी-कभी दिल में आती है एक मंथन की आवाज़, एक आकांक्षा जो किसी अलौकिक अनुभव की ओर खींचती है। आज वैसा ही एक दिन था, जब हमने सोचा कि पूरे परिवार के साथ चल पड़ें कृष्ण और राधा के दर्शन करने।


हज़रतगंज से शहीद पथ के रास्ते पर चलते हुए, मन में एक सुकून की लहर थी, जैसे कुछ अद्भुत मिलने वाला हो। मंदिर पहुँचे तो एक अलग ही जगत का अनुभव हुआ—हरियाली से घिरी वो सुंदर वाटिका, जैसे प्रकृति स्वयं राधा और कृष्ण के स्वागत में सज गई हो। फूलों की खुशबू और तितलियों की चंचल उड़ान, ये सब मिलकर मन को प्रसन्न कर रहे थे।

मंदिर के पीछे बनी गौशाला देखने का सुख अनोखा था। कृष्ण की प्रिय गायों के बीच हम खड़े थे, और जैसे ही हमने उन्हें गुड़ खिलाया, वो सब हमारे पास आ गईं, जैसे अपने प्रिय दोस्त से मिलने आई हों।



मंदिर में एक शांति थी, लेकिन साथ ही हर तरफ "हरे कृष्ण, हरे राम" की ध्वनि गूँज रही थी, जो मन को एक अलग ही शांति और आनंद से भर रही थी। शहर की दौड़-भाग से दूर, इस मंदिर में सिर्फ एक पवित्र सुकून और प्राकृतिक खूबसूरती थी।

 


शाम को 7 बजे, आरती का समय आया। भजन और कीर्तन की मधुर धुन, मंदिर के हर कोने में गूँज रही थी। मंदिर में सभी भक्त अपनी भक्ति में मग्न थे—नाच रहे थे, गा रहे थे। आरती के ताल से ताल मिलाकर हम भी नाचने लगे, जैसे भगवान की इस दिव्य महफिल का हिस्सा बन गए हों।





आरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ। मंदिर छोड़ने का समय आया, पर ऐसा लगा जैसे हम अपना तन यहाँ लेकर जा रहे हों, पर मन और आत्मा वहीं छोड़ आए हों। जाने से पहले हमने कृष्ण से बस इतना कहा, "हे कृष्ण, हमें फिर से बुलाना। मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो ना कोई..."






यह सफर नहीं, एक आत्मा का कृष्ण के दर्शन का अनुभव था, जो हमेशा दिल में जीवित रहेगा।