लखनऊ के शोर और भीड़-भाड़ से दूर, सुल्तानपुर रोड पर, एक शांत और पवित्र जगह है – इस्कॉन का श्री श्री राधा रमण बिहारी जी मंदिर। कभी-कभी दिल में आती है एक मंथन की आवाज़, एक आकांक्षा जो किसी अलौकिक अनुभव की ओर खींचती है। आज वैसा ही एक दिन था, जब हमने सोचा कि पूरे परिवार के साथ चल पड़ें कृष्ण और राधा के दर्शन करने।
हज़रतगंज से शहीद पथ के रास्ते पर चलते हुए, मन में एक सुकून की लहर थी, जैसे कुछ अद्भुत मिलने वाला हो। मंदिर पहुँचे तो एक अलग ही जगत का अनुभव हुआ—हरियाली से घिरी वो सुंदर वाटिका, जैसे प्रकृति स्वयं राधा और कृष्ण के स्वागत में सज गई हो। फूलों की खुशबू और तितलियों की चंचल उड़ान, ये सब मिलकर मन को प्रसन्न कर रहे थे।
मंदिर के पीछे बनी गौशाला देखने का सुख अनोखा था। कृष्ण की प्रिय गायों के बीच हम खड़े थे, और जैसे ही हमने उन्हें गुड़ खिलाया, वो सब हमारे पास आ गईं, जैसे अपने प्रिय दोस्त से मिलने आई हों।
मंदिर में एक शांति थी, लेकिन साथ ही हर तरफ "हरे कृष्ण, हरे राम" की ध्वनि गूँज रही थी, जो मन को एक अलग ही शांति और आनंद से भर रही थी। शहर की दौड़-भाग से दूर, इस मंदिर में सिर्फ एक पवित्र सुकून और प्राकृतिक खूबसूरती थी।
शाम को 7 बजे, आरती का समय आया। भजन और कीर्तन की मधुर धुन, मंदिर के हर कोने में गूँज रही थी। मंदिर में सभी भक्त अपनी भक्ति में मग्न थे—नाच रहे थे, गा रहे थे। आरती के ताल से ताल मिलाकर हम भी नाचने लगे, जैसे भगवान की इस दिव्य महफिल का हिस्सा बन गए हों।
आरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ। मंदिर छोड़ने का समय आया, पर ऐसा लगा जैसे हम अपना तन यहाँ लेकर जा रहे हों, पर मन और आत्मा वहीं छोड़ आए हों। जाने से पहले हमने कृष्ण से बस इतना कहा, "हे कृष्ण, हमें फिर से बुलाना। मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो ना कोई..."
यह सफर नहीं, एक आत्मा का कृष्ण के दर्शन का अनुभव था, जो हमेशा दिल में जीवित रहेगा।
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